फसल कि फाँसी
अब फिर , मॉनसून आया है ।
बुझ रही , धरती की ये आग ।
नदियाँ हँस रही , पोखरें नाच रहे ।
तितली उड़ रही , मेंढक गा रहें ।
फिर भी कोई रो रहा है , कह रहा है ।
अब आके क्या , जब फसल को हो गई फाँसी ।
अब तो भूख करेगी , मेरी वर्षा ।
फसल कि फाँसी से होगी , अब मुझको फाँसी ।
- आदित्य
No comments:
Post a Comment